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HNGIL Insolvency Case:विदेशी फंडिंग और मार्केट में गड़बड़ियों पर खड़ा हुआ बड़ा विवाद! RBI-SEBI से जांच की मांग

HNGIL Insolvency Case:विदेशी फंडिंग और मार्केट में गड़बड़ियों पर खड़ा हुआ बड़ा विवाद! RBI-SEBI से जांच की मांग

 

HNGIL का insolvency केस अब और बड़ा बवाल बन गया है. एक लीगल नोटिस में विदेशी फंडिंग और मार्केट मैनिपुलेशन की शिकायत करते हुए RBI और SEBI से जांच की मांग की गई है. INSCO का रेजोल्यूशन प्लान सवालों के घेरे में है क्योंकि इसकी फंडिंग संदिग्ध बताई जा रही है. दूसरी तरफ, ट्रेडिंग सस्पेंशन और डीलिस्टिंग जैसे कदम भी बिना शर्तें पूरी किए उठाए गए. अब पूरा मामला NCLAT और सुप्रीम कोर्ट में अटका है. ये केस सिर्फ एक कंपनी तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे IBC कानून की साख पर सवाल खड़े कर रहा है.

HNGIL Insolvency: विवाद कहां से शुरू हुआ?

हिंदुस्तान नेशनल ग्लास एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड (HNGIL) का कॉर्पोरेट दिवालिया मामला भारत के सबसे लंबे और विवादास्पद इन्सॉल्वेंसी केसों में गिना जा रहा है. एक जमाने में देश की सबसे बड़ी कंटेनर ग्लास बनाने वाली कंपनी अब रेगुलेटरी और लीगल विवादों के जाल में फंस चुकी है.

सबसे ताजा घटनाक्रम में 39 पन्नों का एक लीगल नोटिस सीधे RBI, SEBI, वित्त मंत्रालय, कॉरपोरेट अफेयर्स मंत्रालय और IBBI को भेजा गया है. इस नोटिस में कहा गया है कि INSCO (Independent Sugar Corporation Ltd.) ने जो रेजोल्यूशन प्लान पेश किया है, उसमें फंडिंग स्ट्रक्चर न सिर्फ संदिग्ध है बल्कि भारतीय कानूनों और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का सीधा उल्लंघन करता है.

नोटिस में इसे ‘भारत की रेगुलेटरी व्यवस्था पर सीधा हमला’ बताया गया है और त्वरित जांच की मांग की गई है.

रेजोल्यूशन प्लान क्यों विवादों में है?

14 अगस्त 2025 को NCLT ने INSCO का रेजोल्यूशन प्लान मंजूर किया. ये प्लान 8 जून 2025 को पेश किया गया था और CoC (Committee of Creditors) से 96% से ज्यादा वोटिंग मिली थी. लेकिन विवाद की जड़ है इसकी फाइनेंसिंग व्यवस्था, जिसमें दो बड़े टर्म शीट शामिल थे.

Cerberus Global Investments BV Term Sheet (29 अप्रैल 2025)

    • ये टर्म शीट सिर्फ एक indicative डॉक्यूमेंट था.

 

    • पूरी तरह नॉन-बाइंडिंग यानी कानूनी रूप से कोई बाध्यता नहीं.

 

    • डॉक्यूमेंट काफी हद तक ब्लाक्ड आउट (redacted) था और डिस्क्लेमर्स से भरा था.

 

    • सवाल ये उठ रहा है कि जब इसमें कोई एन्फोर्सेबल कमिटमेंट नहीं था, तो इसे फंडिंग का आधार कैसे माना गया.

 

International Finance Corporation (IFC) Term Sheet (14 जुलाई 2022)

    • इस डॉक्यूमेंट को रेजोल्यूशन प्लान के साथ बाद में जोड़ा गया.

 

    • लेकिन ये 2022 का है और समय बीतने से इसकी वैधता संदिग्ध हो गई है.

 

    • इसे अचानक जोड़ने से डिस्क्लोजर और ट्रांसपेरेंसी पर गंभीर सवाल उठे हैं.

 

इन दोनों के बावजूद CoC ने इस रेजोल्यूशन प्लान को मंजूरी दे दी. यही वजह है कि अब इसे कई स्टेकहोल्डर्स, खासकर ऑपरेशनल क्रेडिटर्स और अनसिक्योर्ड फाइनेंशियल क्रेडिटर्स ने NCLAT में चुनौती दी है.

NCLAT Hearing में अब क्या हो रहा है?

    1. NCLAT ने सभी अपीलें एक साथ सुनने का फैसला किया है.

 

    1. सभी पक्षों को अपना रिप्लाई और rejoinder फाइल करने के लिए समय दिया गया है.

 

    1. अगली फाइनल सुनवाई 9 अक्टूबर 2025 को होगी.

 

    1. फिलहाल रेजोल्यूशन प्लान को रोकने (stay) का आदेश नहीं दिया गया है, लेकिन NCLAT ने साफ कर दिया है कि प्लान से जुड़े सभी कदम अपील के नतीजे पर निर्भर होंगे.

 

    1. इसका मतलब ये है कि INSCO प्लान का भविष्य अधर में लटका हुआ है.

 

Cerberus–Madhvani Private Credit Deal पर क्यों उठे सवाल?

ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट (26 अगस्त 2025) ने एक और बड़ा खुलासा किया. इसमें बताया गया कि Cerberus Capital Management LP और Uganda की Madhvani Group के बीच $190 मिलियन की प्राइवेट क्रेडिट डील पर बातचीत चल रही थी.

शिकायतकर्ता का कहना है कि ये पूरी डील RBI और FEMA के नियमों का उल्लंघन करती है. Ineligible lender, tenor violation और end-use restrictions को तोड़ती है. फंड फ्लो पूरी तरह opaque है. नोटिस में इसे “illegal structure to route foreign money into Indian listed company” कहा गया है.

Trading Suspension और Delisting क्यों विवादित है?

नोटिस में एक और बड़ा मुद्दा उठाया गया है- HNGIL के शेयरों का अचानक ट्रेडिंग से सस्पेंड होना और डीलिस्टिंग प्रोसेस की शुरुआत. इस पर सवाल इसलिए उठे क्योंकि, रेजोल्यूशन प्लान के तहत क्रेडिटर्स को अभी तक अपफ्रंट पेमेंट्स नहीं मिलीं. Section 31(4) IBC और SEBI LODR Rules के मुताबिक नई बोर्ड रिकंस्टीट्यूशन अनिवार्य थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. SEBI Delisting Regulations, 2021 के तहत बिना ड्यूज क्लियर किए डीलिस्टिंग मुमकिन नहीं. शिकायतकर्ता का आरोप है कि CoC और INSCO मिलीभगत से माइनॉरिटी शेयहोल्डर्स और पब्लिक इन्वेस्टर्स को बाहर करने की कोशिश कर रहे हैं.

HNGIL Case इतना बड़ा क्यों है?

ये विवाद सिर्फ एक कंपनी तक सीमित नहीं है. ये सीधे-सीधे IBC (Insolvency & Bankruptcy Code, 2016) की क्रेडिबिलिटी पर सवाल खड़ा करता है. अगर फॉरेन प्राइवेट क्रेडिट ऐसे ही इस्तेमाल होती रही, तो रेगुलेटरी फ्रेमवर्क कमजोर पड़ जाएगा. माइनॉरिटी शेयरहोल्डर्स का हक मारा जाएगा. इन्सॉल्वेंसी प्रोसेस का भरोसा टूटेगा.

शिकायतकर्ता ने चेतावनी दी है कि “अगर RBI और SEBI ने तुरंत कदम नहीं उठाए तो HNGIL केस खतरनाक मिसाल बन जाएगा और भारत के फाइनेंशियल सिस्टम की साख को नुकसान होगा.”

पारदर्शिता का टेस्ट बन गया इन्सॉल्वेंसी केस

HNGIL का इन्सॉल्वेंसी केस अब सिर्फ कॉरपोरेट रेजोल्यूशन का मामला नहीं रहा. ये सीधे तौर पर भारत के IBC कानून, RBI-SEBI के नियमों और मार्केट की पारदर्शिता का टेस्ट बन गया है. रेजोल्यूशन प्लान की फाइनेंसिंग संदिग्ध है, डीलिस्टिंग सवालों के घेरे में है और रेगुलेटरी बॉडीज पर अब दबाव है कि वे सख्त कदम उठाएं. 9 अक्टूबर 2025 को NCLAT की सुनवाई और आगे सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस पूरे केस की दिशा तय करेगा.

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