Last Updated on November 20, 2025 18:44, PM by Khushi Verma
रिटारमेंट के बाद कई लोग बड़े फंड के निवेश से रेगुलर इनकम पाना चाहते हैं। 54 साल के महेश जैन एक एनआरआई हैं। वह इंडिया में सेटल होना चाहते हैं। वह 50 लाख रुपये का निवेश रेगुलर इनकम के लिए बराबर-बराबर मल्टी-एसेट फंड और बैलेंस्ड एडवांटेज फंड में करना चाहते हैं। उनका सवाल है कि क्या मंथली विड्रॉल के लिए आईडीसीडब्लू के साथ मंथली डिविडेंड पेआउट या रीइनवेस्टमेंट ऑप्शन का इस्तेमाल कर सकते हैं? मनीकंट्रोल ने यह सवाल टैक्स एक्सपर्ट और सीए बलवंत जैन से पूछा।
कैपिटल गेंस टैक्स के नियमों में बड़े बदलाव
जैन ने कहा कि बीते दो सालों में कैपिटल गेंस पर टैक्स के नियमों में बड़ा बदलाव आया है। इंडेक्सेशन का बेनेफिट खत्म हो गया है। नॉन-इक्विटी म्यूचुअल फंड्स स्कीम के टैक्स के नियमों में भी बड़ा बदलाव आया है। 23 जुलाई, 2024 के बाद डेट फंड में निवेश से होने वाले कैपिटल गेंस को शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस माना जाता है। फिर उस पर इनवेस्टर के टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स लगता है। अब डेट फंड के मामले में होल्डिंग पीरियड का कोई मतलब नहीं रह गया है।
डेट फंड से मिला रिटर्न शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस
उन्होंने कहा कि डेट इंस्ट्रूमेंट्स में 65 फीसदी या इससे ज्यादा निवेश करने वाली स्कीम को डेट की कैटेगरी में रखा जाता है। म्यूचुअल फंड्स की इक्विटी स्कीम की यूनिट्स 12 महीने बाद बेचने पर होने वाला मुनाफा लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस के तहत आता है। इस पर 12.50 फीसदी रेट से टैक्स लगता है। 12 महीने से पहले बेचने पर मुनाफा शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस माना जाता है। इस पर 20 फीसदी रेट से टैक्स लगता है। यह ध्यान में रखना होगा कि एक साल में 1.25 लाख तक का लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस टैक्स-फ्री होता है।
स्कीम के हिसाब से टैक्स के अलग-अलग नियम
जैन ने बताया कि ऐसी स्कीम जो लिस्टेड कंपनियों के शेयरों में 65 फीसदी या इससे ज्यादा निवेश करती है वह इक्विटी स्कीम की कैटेगरी में आती है। ऐसी स्कीम जो न तो डेट और न ही इक्विटी स्कीम की कैटेगरी में आती है उसकी यूनिट्स 24 महीने से ज्यादा रखने पर 12.50 फीसदी रेट से टैक्स लगता है। इससे पहले बेचने पर प्रॉफिट पर इनवेस्टर के टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स लगता है।
लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस पर सेक्शन 87ए का रिबेट नहीं
इनकम टैक्स की नई रीजीम में अब कुल सालाना इनकम 12 लाख रुपये तक होने पर कोई टैक्स नहीं लगता है। सेक्शन 87ए के तहत मिलने वाले रिबेट से यह इनकम टैक्स-फ्री हो जाती है। हालांकि, 12.5 फीसदी या 20 फीसदी का लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस इस रिबेट के दायरे में नहीं आता है। इसका मतलब है कि अगर महेश शर्मा की इनकम 12 लाख रुपये तक रहती है तो IDCW के तहत मिलने वाला डिविडेंड टैक्स-फ्री होगा। लेकिन, अगर मल्टी-एसेट या बैलेंस्ड एडवांटेज फंड की यूनिट्स बेचने पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस होता है तो उस पर उन्हें टैक्स चुकाना पड़ेगा। क्योंकि यह कैटेगरी न तो डेट और न ही इक्विटी स्कीम के तहत आती है। इसके चलते उनके पूरे लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस पर 12.50 फीसदी टैक्स लगेगा।
क्या होगी निवेश की बेस्ट स्ट्रेटेजी?
अगर शर्मा इनकम टैक्स की ओल्ड रीजीम का चुनाव करते हैं और कैपिटल गेंस सहित उनकी कुल इनकम 5 लाख रुपये से ज्यादा नहीं है तो वह सेक्शन 87ए के तहत फुल रिबेट के हकदार होंगे। चूंकि उनकी सालाना इनकम 5 लाख से ज्यादा होने की उम्मीद नहीं है इसलिए उन्हें इक्विटी ओरिएंटेड स्कीम में निवेश की जरूरत नहीं है। वह जिन दो कैटेगरी के फंड्स में निवेश करना चाहते हैं उससे होने वाले लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस या डिविडेंड पर कोई टैक्स लायबिलिटी नहीं बनेगी। ऐसे में शर्मा के लिए इनकम टैक्स की ओल्ड रीजीम फायदेमंद लगती है।